भाषा (Language): हिन्दी व्याकरण भाषा की परिभाषा ,भेद ,लिपि
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है| वह सोच- विचार सकता है| अपनी सोच को दूसरे के सामने रखना चाहता है| इसे आधार मानें तो आदिमानव ने अपने मन में उठने वाले भावों और विचारों को व्यक्त करने के लिए पहले संकेतों या कुछ ध्वनि चिन्हों का प्रयोग किया होगा| धीरे-धीरे इन्हीं ध्वनियों को व्यवस्थित किया गया होगा| कुछ ध्वनि - समूह किसी विशेष वस्तु का प्रतीक बनते गए| संकेतों का स्थान शब्दों ने ले लिया| एक के बाद एक शब्द जुड़ते चले गए और यहीं से भाषा का जन्म हुआ होगा|
आज के सभ्य मानव समाज का कार्य व्यवहार भाषा के बिना संभव नहीं| पशु - पक्षियों की भी अपनी भाषा होती है, लेकिन उसे वे ही सिर्फ समझ सकते हैं| केवल मनुष्य ही है, जो भाषा का विविध रूपों में प्रयोग करता है|
भाषा की परिभाषा-
भाषा वह साधन है जिसके द्वारा भावों और विचारों
का आदान- प्रदान किया जाता है|
भाषा के रूप –
मनुष्य बोलकर और लिखकर
अपने भाव और विचार व्यक्त करता है तथा सुनकर और पढ़कर दूसरों के भाव या विचार
ग्रहण करता है| इस आधार पर भाषा के दो रूप
हैं-
* मौखिक भाषा
* लिखित भाषा
मौखिक भाषा- भाषा मूल रूप से मौखिक है| बोलकर और सुनकर भावों और
विचारों का आदान-प्रदान मौखिक भाषा है| हम सबसे पहले मौखिक भाषा ही सीखते हैं|
इसके लिए कोई विशेष यत्न नहीं करना पड़ता| दूरदर्शन के कार्यक्रम, आपस में बातचीत करना, कहानी सुनाना
आदि मौखिक भाषा है |
*लिखित भाषा-
मौखिक भाषा स्थायी नहीं होती क्योंकि इसमें समय- समय पर परिवर्तन होते रहते हैं| इसीलिए लिखित भाषा का जन्म
हुआ| लिखकर और पढ़कर अपने भावों और विचारों का आदान- प्रदान करना
लिखित भाषा है| इसे सयत्न सीखना पड़ता है| विद्यालय का गृहकार्य करना, समाचार – पत्र या पत्रिकाएँ
पढ़ना, ई-मेल आदि लिखित के
उदाहरण हैं |
*उपभाषा-
उपभाषा का क्षेत्र बोली
की अपेक्षा बड़ा होता है| इसका साहित्य मौखिक के साथ-साथ लिखित भी होता है, जैसे – अवधि, मैथिली, ब्रज आदि
बोलियों में साहित्य की रचना हुई और इनका क्षेत्र भी विस्तृत था इसीलिए यह भाषा कहलाई
|
*मातृभाषा-
जिस भाषा को हम अपने घर में बोलते हैं वही
मातृभाषा कहलाती है| ज्ञान का सबसे उपयुक्त माध्यम मातृभाषा है| पंजाब में
रहनेवाले की मातृभाषा पंजाबी, बंगाल में रहने
वाले की बंगाली और तमिलनाडु में रहने वाले की मातृभाषा तमिल होगी|
* राष्ट्रभाषा-
राष्ट्रभाषा यानी वह भाषा जो देश के अधिकांश
प्रदेशों, समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों द्वारा
बोली जाती है| इस दृष्टि से हिंदी का स्थान सर्वोपरि है क्योंकि यह देश के लगभग
70% लोगों द्वारा बोली जाती है|
*राजभाषा-
राजभाषा वह भाषा है, जिसका प्रयोग सरकारी कार्यालयों में काम-काज के लिए होता है| 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारतीय संविधान द्वारा राजभाषा का दर्जा
दिया गया| इस दिन को प्रत्येक वर्ष ‘हिंदी दिवस’ के रुप में मनाया जाता है|
*मानक भाषा –
भाषा की एकरूपता को बनाए
रखने के लिए विद्वानों द्वारा भाषा के अनेक रूपों में से जिस रूप को मान्यता दी
जाती है वह भाषा का मानक रूप कहलाता है| खड़ी बोली हिंदी हमारा मानक रूप है संपर्क
*भाषा-
वह भाषा जिसका प्रयोग लोग
आपस में संपर्क करने के लिए करते हैं,वह संपर्क भाषा
कहलाती है भारत की संपर्कभाषा कहलाती है |भारत की संपर्क भाषा हिंदी और विश्व की
संपर्क भाषा अंग्रेजी है |
*भारतीय भाषाएँ-
भारतीय संविधान की अष्टम
अनुसूची में 22 भाषाओं को स्थान दिया गया है यह है|ये हैं – असमिया, ओड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी, तमिल, तेलुगू, नेपाली, पंजाबी, बांगला, बोडो, मणिपुरी, मराठी मलयालम, मैथिली, संथाली, संस्कृत, संधि, हिंदी|
*लिपि –
मानव समाज जब थोड़ा और विकसित हुआ, उसका फैलाव भी बढ़ा| केवल मौखिक रूप से बात नहीं बनी|
मनुष्य ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कुछ रेखा चित्र बनाए| धीरे-धीरे इन रेखाओं
को ध्वनि- प्रतीकों के रूप में निश्चित करने लगा| निरंतर
प्रयास करते- करते लंबे समय में लिपि
का विकास हुआ| इस प्रकार लिपि लिखित भाषा का आधार बनी|
लिखने की विधि या लिखने के ढंग को लिपि कहते हैं|
जिस प्रकार विश्व में अनेक भाषाएँ हैं उसी प्रकार इनको
लिखने के ढंग भी अनेक हैं| अतः उनकी लिपियाँ भी विभिन्न है; जैसे – हिंदी, मराठी, कश्मीरी, कोंकनी, नेपाली, संथाली, बोडो आदि ‘देवनागरी’ लिपि में लिखी जाती है| अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रांसीसी, आदि ‘रोमन’ में; उर्दू ‘फारसी’ में पंजाबी ‘गुरुमुखी’ में
और बांगला भाषा ‘बांगला’ लिपि में लिखी जाती है|
देवनागरी लिपि की विशेषताएँ
1. * देवनागरी लिपि में
वर्णों का क्रम वैज्ञानिक और व्यवस्थित है |
2. * देवनागरी लिपि का
किसी भी भाषा में अनुवाद या लिपि- अंतरण हो सकता है|
3. * प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग लिपि- चिन्ह और मात्राएँ होने के कारण लेखन में शुद्धता है| *देवनागरी जैसी बोली जाती है वैसे ही लिखी भी जाती है| जबकि फ़ारसी
और रोमन में ऐसा नहीं है| देवनागरी में- क, प, म, फ़ारसी में- काफ़, पे, मीम और रोमन में- के, पी, एम|
व्याकरण
अब मानव के पास भाषा भी हो गई और लिपि
भी किंतु एक व्यक्ति की बात को अलग- अलग ढंग से समझा
और ग्रहण किया जाने लगा| इससे विचार बना के कुछ नियम बना कर इस स्वरुप को और
व्यवस्थित कर दिया जाए ताकि सभी भाषा के एक ही रूप को एक ही प्रकार से समझें| इसके
लिए व्याकरण की व्यवस्था की गई जिसने भाषा की शुद्धता की जाँच- पड़ताल का ज़िम्मा लिया| इस प्रकार-
व्याकरण वह शास्त्र है जिसके द्वारा
भाषा के शुद्ध रूप तथा शब्द प्रयोग का ज्ञान होता है|
* व्याकरण के अंग
व्याकरण के तीन अंग होते हैं-
१.वर्ण विचार
२.शब्द विचार
३.वाक्य विचार
वर्ण विचार - वर्णों के आकार, भेद, उच्चारण का
अध्ययन करता है|
शब्द विचार- शब्दों के रूप, भेद, आदि का अध्ययन करता है|
वाक्य विचार- वाक्यों के प्रकार, वाक्य विग्रह, पद- परिचय, विराम- चिन्हों का अध्ययन करता है|
*साहित्य
साहित्य शब्द की उत्पत्ति ‘स+हित के योग से
हुई है| यहाँ ‘स’का अर्थ ‘सबका’ अर्थात ‘संपूर्ण समाज का’ से है, जबकि ‘हित’ का अर्थ ‘लाभ’ है| इस प्रकार साहित्य का अर्थ
हुआ- संपूर्ण समाज का हित|
हिंदी साहित्य में साहित्य को
परिभाषित करते हुए कहा गया है- ज्ञान के संचित
कोष को साहित्य कहते हैं|
साहित्य के मुख्य रूप से दो प्रकार
हैं-
1 . पद्य
2. गद्य
*पद्य साहित्य - इसे काव्य, कविता भी कहा
जाता है| जब कवि अपने मन के विचार एवं भावों को छंद, तुक, लय आदि द्वारा व्यक्त करता है, तब उसे पद्य साहित्य कहते हैं|
* गद्य साहित्य- इसमें लेखक अपने भावों को अथवा विचारों को व्यवस्थित भाषा और रचनात्मक प्रक्रिया द्वारा व्यक्त करता है | गद्य के अंतर्गत निबंध, कहानी, उपन्यास, नाटक, आत्मकथा, जीवनी, यात्रा वृत्तांत आते हैं|
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